बदन दरीदा हूँ यारो शिकस्ता पा हूँ मैं

बदन दरीदा हूँ यारो शिकस्ता पा हूँ मैं
कि जैसे अपने बुज़ुर्गों की बददुआ हूँ मैं,

वो शख़्स तो किसी अंधी सुरंग जैसा है
और उस से ज़िंदा निकलने का रास्ता हूँ मैं,

वो हमसफ़र ही नहीं मानता मुझे अपना
ये जानता हूँ मगर साथ चल रहा हूँ मैं,

ये भूल जाओ कि तुम मुझ को भूल जाओगे
कभी तो तुम से मिलूँगा कि हादिसा हूँ मैं,

मेरी शनाख़्त मेरा चेहरा गर भी कर न सका
सलीम इतनी बुलंदी से गिर पड़ा हूँ मैं..!!

~सलीम अंसारी

लहूलुहान परों पर उड़ान रख देना

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