इस शहर ए ख़राबी में ग़म ए इश्क़ के मारे

इस शहर ए ख़राबी में ग़म ए इश्क़ के मारे
ज़िंदा हैं यही बात बड़ी बात है प्यारे,

ये हँसता हुआ चाँद ये पुरनूर सितारे
ताबिंदा ओ पाइंदा हैं ज़र्रों के सहारे,

हसरत है कोई ग़ुंचा हमें प्यार से देखे
अरमाँ है कोई फूल हमें दिल से पुकारे,

हर सुब्ह मेरी सुब्ह पे रोती रही शबनम
हर रात मेरी रात पे हँसते रहे तारे,

कुछ और भी हैं काम हमें ऐ ग़म ए जानाँ
कब तक कोई उलझी हुई ज़ुल्फ़ों को सँवारे..!!

~हबीब जालिब

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