मेरे हमनफ़स मेरे हमनवा मुझे दोस्त बन के दग़ा न दे

मेरे हमनफ़स मेरे हमनवा मुझे दोस्त बन के दग़ा न दे
मैं हूँ दर्द ए इश्क़ से जाँ ब लब मुझे ज़िंदगी की दुआ न दे,

मेरे दाग़ ए दिल से है रौशनी इसी रौशनी से है ज़िंदगी
मुझे डर है ऐ मेरे चारागर ये चराग़ तू ही बुझा न दे,

मुझे छोड़ दे मेरे हाल पर तेरा क्या भरोसा है चारागर
ये तेरी नवाज़िश ए मुख़्तसर मेरा दर्द और बढ़ा न दे,

मेरा अज़्म इतना बुलंद है कि पराए शोलों का डर नहीं
मुझे ख़ौफ़ आतिश ए गुल से है ये कहीं चमन को जला न दे,

वो उठे हैं ले के ख़ुम ओ सुबू अरे ओ शकील कहाँ है तू ?
तेरा जाम लेने को बज़्म में कोई और हाथ बढ़ा न दे..!!

~शकील बदायूनी

संबंधित अश'आर | गज़लें

Leave a Reply