क्या कहते क्या जी में था

क्या कहते क्या जी में था
शोर बहुत बस्ती में था,

पहली बूँद गिरी टप से
फिर सब कुछ पानी में था,

छतें गिरीं घर बैठ गए
ज़ोर ऐसा आँधी में था,

मौजें साहिल फाँद गईं
दरिया गली गली में था,

मेरी लाश नहीं है ये
क्या इतना भारी मैं था,

आख़िर तूफ़ाँ गुज़र गया
देखा तो बाक़ी मैं था,

छोड़ गया मुझ को अल्वी
शायद वो जल्दी में था..!!

~मोहम्मद अल्वी

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