ऐ जुनूँ तेरा अभी तक न मुक़द्दर बदला
शहर बदला न किसी हाथ का पत्थर बदला,
ज़िंदगी बख़्श दी जब क़त्ल मुझे कर न सका
मेरे क़ातिल ने बहुत तेज़ ये ख़ंजर बदला,
हो गई राह ए जुनूँ फिर किसी साज़िश का शिकार
मुझ को लगता है हर एक मील का पत्थर बदला,
मैं तो समझा था यहाँ फ़न की परस्तिश होगी
चंद सिक्कों का उछलना था कि मंज़र बदला,
वो अगर राह में खुलता तो कोई बात भी थी
हाए अफ़्सोस कि मंज़िल पे पहुँच कर बदला,
बात तो जब थी कि तुम ख़ुद को बदलते यारो
आज तक तुम ने हर एक मोड़ पे रहबर बदला,
मेरे दामन में तो ख़्वाबों के सिवा कुछ भी न था
वो जो बदला तो बहुत सोच समझ कर बदला,
रंग ओ आहंग कली फूल परिंदे भँवरे
रुत बदलते ही हर एक शाख़ का मंज़र बदला..!!
~शायर जमाली