जाने कब किस के छलकने से हो दुनिया ग़र्क़ ए आब
मेरी मुट्ठी में है दरिया साग़र ओ जोश ए शबाब,
दीदा ओ दिल का पियाला भी गँवा आए मज़ीद
दीदा ए ख़म्मार की ख़्वाहिश में हम ख़ाना ख़राब,
रक़्स ए वहशत के लिए कोई तो महवर चाहिए
पाँव बेज़ंजीर हैं और ख़ेमा बेचोब ओ तनाब,
अब से इन जंग ओ जदल में दानापानी के सिवा
साथ में तब्ल ओ अलम हो और ताऊस ओ रबाब,
मेरी बातों में भी राज़ ए आगही आ ही गया
जैसे रम्ज़ ए रू ए जानाँ जैसे असरार ए किताब..!!
~अश्क अलमास