उलझे काँटों से कि खेले गुल ए तर से…
उलझे काँटों से कि खेले गुल ए तर से पहले फ़िक्र ये है कि सबा आए किधर से …
उलझे काँटों से कि खेले गुल ए तर से पहले फ़िक्र ये है कि सबा आए किधर से …
वही हुस्न ए यार में है वही लाला ज़ार में है वो जो कैफ़ियत नशे की मय ए …
वही है वहशत वही है नफ़रत आख़िर इस का क्या है सबब ? इंसाँ इंसाँ बहुत रटा है …