ग़म के हर एक रंग से मुझको शनासा कर
ग़म के हर एक रंग से मुझको शनासा कर गया वो मेरा मोहसिन मुझे पत्थर …
ग़म के हर एक रंग से मुझको शनासा कर गया वो मेरा मोहसिन मुझे पत्थर …
ग़म है वहीं प ग़म का सहारा गुज़र गया दरिया ठहर गया है किनारा गुज़र …
फ़ासले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा न था सामने बैठा था मेरे और वो …