सुल्ह की हद तक सितमगर आ गया

सुल्ह की हद तक सितमगर आ गया
आइने की ज़द में पत्थर आ गया,

आग तो सुलगी थी दामन के क़रीब
आस्तीं का साँप बाहर आ गया,

तेग़ में थी जिस के दम से आब ओ ताब
तेग़ की ज़द में वही सर आ गया,

दरिया दरिया पार होना था मुझे
बीच में कोई समुंदर आ गया,

धूप में चलने की आदत है मुझे
ढल गई जब धूप तो घर आ गया..!!

~हामी गोरखपुरी

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