जिस तरह चढ़ता है उसी तरह उतरता है
जिस तरह चढ़ता है उसी तरह उतरता है चोटियों पर सदा के लिए कौन ठहरता है ? बहुत
जिस तरह चढ़ता है उसी तरह उतरता है चोटियों पर सदा के लिए कौन ठहरता है ? बहुत
दुख और तरह के हैं दुआ और तरह की और दामन ए क़ातिल की हवा और तरह की,
ऐ वक़्त ज़रा थम जा ये कैसी रवानी है आँखों में अभी बाक़ी एक ख्वाब ए जवानी है,
दिल भी बुझा हो शाम की परछाइयाँ भी हों मर जाइये जो ऐसे में तन्हाइयाँ भी हों, आँखों
उनसे मिलिए जो यहाँ फेर बदल वाले है हमसे मत बोलिए हम लोग गज़ल वाले है, कैसे शफ़्फ़ाफ
नज़र फ़रेब ए क़ज़ा खा गई तो क्या होगा हयात मौत से टकरा गई तो क्या होगा ?
चाँद पर बस्तियाँ तो बसा लोगे मगर चाँदनी कहाँ से लाओगे ? सलब कर लीं समाअतें सबकी किस
धड़कते साँस लेते रुकते चलते मैंने देखा है कोई तो है जिसे अपने मे पलते मैंने देखा है,
आज ज़रा फुर्सत पाई थी आज उसे फिर याद किया बंद गली के आख़िरी घर को आज फिर
दुख दर्द के मारों से मेरा ज़िक्र न करना घर जाऊँ तो यारों से मेरा ज़िक्र न करना,