बार ए गम ए हयात उठाया तो रो पड़े
बार ए गम ए हयात उठाया तो रो पड़े जब ज़ीस्त ने मजाक उड़ाया तो रो पड़े, रहता
बार ए गम ए हयात उठाया तो रो पड़े जब ज़ीस्त ने मजाक उड़ाया तो रो पड़े, रहता
बताओ कौन कहता है ? मुहब्बत बस कहानी है मुहब्बत तो सहीफ़ा है, मुहब्बत आसमानी है, मुहब्बत को
नींद नहीं आती कितनी अकेली हो गई रफ़ू करते करते ज़िन्दगी पहेली हो गई, ये हसरतें भी ख़्वाब
हर एक घर में दिया भी जले अनाज भी हो अगर न हो कहीं ऐसा तो एहतिजाज भी
नई नई आँखें हों तो हर मंज़र अच्छा लगता है कुछ दिन शहर में घूमे लेकिन अब घर
आज ज़रा फ़ुर्सत पाई थी आज उसे फिर याद किया बंद गली के आख़िरी घर को खोल के
मुँह की बात सुने हर कोई दिल के दर्द को जाने कौन आवाज़ों के बाज़ारों में ख़ामोशी पहचाने
हर तरफ़ हर जगह बेशुमार आदमी फिर भी तन्हाइयों का शिकार आदमी, सुब्ह से शाम तक बोझ ढोता
जो हो एक बार वो हर बार हो ऐसा नहीं होता हमेशा एक ही से प्यार हो ऐसा
तुम अपने अक़ीदों के नेज़े हर दिल में उतारे जाते हो, हम लोग मोहब्बत वाले हैं तुम ख़ंजर