अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जाएँगे
अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जाएँगे मर के भी चैन न पाया तो किधर
अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जाएँगे मर के भी चैन न पाया तो किधर
कभी नज़रे मिला के कभी झुका के लूटा कभी हँस के तो कभी मुस्कुरा के लूटा, मौज ए
धूप सरों पर और दामन में साया है सुन तो सही जो पेड़ो ने फ़रमाया है, कैसे कह
बैर दुनिया से क़बीले से लड़ाई लेते एक सच के लिए किस किस से बुराई लेते, आबले अपने
ये बात फिर मुझे सूरज बताने आया है अज़ल से मेरे तआ’क़ुब में मेरा साया है, बुलंद होती
तेरा हाथ, हाथ में हो अगर तो सफर ही असल ए हयात है, मेरे हर कदम पे हैं
जाने कब किस के छलकने से हो दुनिया ग़र्क़ ए आब मेरी मुट्ठी में है दरिया साग़र ओ
ठीक है कि ये जहाँ मुद्दत से उर्यानी पे था पर किसे यूँ नाज़ कल तक चाक दामानी
दिल मेरा रक़्साँ है जब से अक़्ल इस शोरिश में है लर्ज़िश ए पा आसमाँ या ये जहाँ
जाने क्यूँ बर्बाद होना चाहता है सूरत ए फ़रहाद होना चाहता है, ज़ेहन से आख़िर में अब थक