मेरा पड़ोसी कोई माल दार थोड़ी है
मेरा पड़ोसी कोई माल दार थोड़ी है ये कार बैंक की है उसकी कार थोड़ी है, हर एक
मेरा पड़ोसी कोई माल दार थोड़ी है ये कार बैंक की है उसकी कार थोड़ी है, हर एक
उस बाप से नाता तोड़ लिया जिस बाप का था बेहद प्यारा तू माल हड़प कर बैठा है
दिल मोहब्बत में मुब्तला हो जाए जो अभी तक न हो सका हो जाए, तुझ में ये ऐब
ज़र्द मौसम के एक शजर जैसी सारी बस्ती है मेरे घर जैसी, जब बिगड़ता है वक़्त इंसाँ का
ख़त्म है बादल की जब से साएबानी धूप में आग होती जा रही है ज़िंदगानी धूप में, चाँद
नई पोशाक पहने है पुराने ख़्वाब की हसरत मैं हँस कर टाल देती हूँ दिल ए बेताब की
वो काश मान लेता कभी हमसफ़र मुझे तो रास्तो के पेच का होता न डर मुझे, बेशक ये
चेहरा देखें तेरे होंठ और पलकें देखें दिल पे आँखें रखे तेरी साँसें देखें, सुर्ख़ लबों से सब्ज़
एक हवेली हूँ उस का दर भी हूँ ख़ुद ही आँगन ख़ुद ही शजर भी हूँ, अपनी मस्ती
कुछ ज़रूरत से कम किया गया है तेरे जाने का ग़म किया गया है, ता क़यामत हरे भरे