किसी और ग़म में इतनी ख़लिश ए निहाँ नहीं है
किसी और ग़म में इतनी ख़लिश ए निहाँ नहीं है ग़म ए दिल मेरे रफ़ीक़ो ग़म ए राएगाँ
किसी और ग़म में इतनी ख़लिश ए निहाँ नहीं है ग़म ए दिल मेरे रफ़ीक़ो ग़म ए राएगाँ
आँधी चली तो नक़्श ए कफ़ ए पा नहीं मिला दिल जिस से मिल गया वो दोबारा नहीं
कभी झिड़की से कभी प्यार से समझाते रहे हम गई रात पे दिल को लिए बहलाते रहे, अपने
सीने में ख़िज़ाँ आँखों में बरसात रही है इस इश्क़ में हर फ़स्ल की सौग़ात रही है, किस
इस क़दर मुसलसल थीं शिद्दतें जुदाई की आज पहली बार उस से मैं ने बेवफ़ाई की, वर्ना अब
ये शहर सेहर ज़दा है सदा किसी की नहीं यहाँ ख़ुद अपने लिए भी दुआ किसी की नहीं,
यूँ ही राह ए वफ़ा की सलीब पर दो क़दम उठाने के शुक्रिया बड़ा पुर खतर है ये
अजब अपना हाल होता जो विसाल ए यार होता कभी जान सदक़े होती कभी दिल निसार होता, कोई
आप का एतिबार कौन करे रोज़ का इंतिज़ार कौन करे ज़िक्र ए मेहर ओ वफ़ा तो हम करते
फिरे राह से वो यहाँ आते आते अजल मर रही तू कहाँ आते आते, न जाना कि दुनिया