दुआ सलाम में लिपटी ज़रूरतें माँगे

duaa salam me lipti zaruraten maange

दुआ सलाम में लिपटी ज़रूरतें माँगे क़दम क़दम पे ये बस्ती तिजारतें माँगे, कहाँ हर एक को आती

हुए सब के जहाँ में एक जब अपना जहाँ और हम

hue sab ke jahan me ek jab apana jahan

हुए सब के जहाँ में एक जब अपना जहाँ और हम मुसलसल लड़ते रहते हैं ज़मीन ओ आसमाँ

जो कल हैरान थे उन को परेशाँ कर के छोड़ूँगा

jo kal hairaan the un ko pareshan kar ke

जो कल हैरान थे उन को परेशाँ कर के छोड़ूँगा मैं अब आईना ए हस्ती को हैराँ कर

शाम अपनी बेमज़ा जाती है रोज़

shaam apni bemaza jaati hai roz

शाम अपनी बेमज़ा जाती है रोज़ और सितम ये है कि आ जाती है रोज़, कोई दिन आसाँ

मैं वो दरख़्त हूँ खाता है जो भी फल मेरे

main wo darakht hoon jo bhi fal mere

मैं वो दरख़्त हूँ खाता है जो भी फल मेरे ज़रूर मुझ से ये कहता है साथ चल

पेश जो आया सर ए साहिल ए शब बतलाया

pesh aaya sar e sahil e shab batlaya

पेश जो आया सर ए साहिल ए शब बतलाया मौज ए ग़म को भी मगर मौज ए तरब

हर नई शाम सुहानी तो नहीं होती है

har nayi shaam suhani to nahi hoti

हर नई शाम सुहानी तो नहीं होती है और हर उम्र जवानी तो नहीं होती है, तुम ने

किसी की क़ैद से आज़ाद हो के रह गए हैं

kisi ki qaid se aazad ho ke rah gaye hai

किसी की क़ैद से आज़ाद हो के रह गए हैं तबाह हो गए बर्बाद हो के रह गए

सुनी है चाप बहुत वक़्त के गुज़रने की

suni hai chaap bahut waqt ke gujrne kee

सुनी है चाप बहुत वक़्त के गुज़रने की मगर ये ज़ख़्म कि हसरत है जिस के भरने की,

घूम फिर कर इसी कूचे की तरफ़ आएँगे

ghoom fir kar isi kooche kee taraf

घूम फिर कर इसी कूचे की तरफ़ आएँगे दिल से निकले भी अगर हम तो कहाँ जाएँगे ?