लोक गीतों का नगर याद आया
आज परदेस में घर याद आया,
जब चले आए चमन ज़ार से हम
इल्तिफ़ात ए गुल ए तर याद आया,
तेरी बेगाना निगाही सर ए शाम
ये सितम ता ब सहर याद आया,
हम ज़माने का सितम भूल गए
जब तेरा लुत्फ़ ए नज़र याद आया,
तो भी मसरूर था इस शब सर ए बज़्म
अपने शेरों का असर याद आया,
फिर हुआ दर्द ए तमन्ना बेदार
फिर दिल ए ख़ाक बसर याद आया,
हम जिसे भूल चुके थे जालिब
फिर वही राहगुज़र याद आया..!!
~हबीब जालिब

























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