जुदाई में तेरी आँखों को झील करते हुए
सुबूत ज़ाएअ’ किया है दलील करते हुए,
मैं अपने आप से ख़ुश भी नहीं हूँ जाने क्यों ?
सो ख़ुश हूँ अपने ही रस्ते तवील करते हुए,
न जाने याद उसे आया क्या अचानक ही
गले लगा लिया मुझको ज़लील करते हुए,
कहीं तेरी ही तरह हो गया न हो ये दिल
सो डर रहा हूँ अब उसको वकील करते हुए,
थकन सफ़र की तो महसूस ही नहीं होती
चलूँ तुम्हें जो सर ए राह फ़ील करते हुए..!!
~अक्स समस्तीपुरी