अब कोई गुलशन न उजड़े अब वतन आज़ाद है
अब कोई गुलशन न उजड़े अब वतन आज़ाद है रूह गंगा की हिमाला का बदन आज़ाद है, खेतियाँ
sahir-ludhianvi
अब कोई गुलशन न उजड़े अब वतन आज़ाद है रूह गंगा की हिमाला का बदन आज़ाद है, खेतियाँ
संसार से भागे फिरते हो भगवान को तुम क्या पाओगे इस लोक को भी अपना न सके उस
जब इक्कीस बरस गुज़रे आज़ादी ए कामिल को तब जा के कहीं हमको ‘ग़ालिब’ का ख़याल आया, तुर्बत
संसार की हर शय का इतना ही फ़साना है एक धुंध से आना है एक धुंध में जाना