घूम फिर कर इसी कूचे की तरफ़ आएँगे
घूम फिर कर इसी कूचे की तरफ़ आएँगे दिल से निकले भी अगर हम तो कहाँ जाएँगे ?
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घूम फिर कर इसी कूचे की तरफ़ आएँगे दिल से निकले भी अगर हम तो कहाँ जाएँगे ?
किसी के हिज्र में जीना मुहाल हो गया है किसे बताएँ हमारा जो हाल हो गया है ?
निकल पड़े हैं सनम रात के शिवाले से कुछ आज शहर ए ग़रीबाँ में हैं उजाले से, चलो
बचाओ दामन ए दिल ऐसे हमनशीनों से मिला के हाथ जो डसते हैं आस्तीनों से, निगार ए वक़्त
पी ले जो लहू दिल का वो इश्क़ की मस्ती है क्या मस्त है ये नागन अपने ही
ज़हर को मय दिल ए सद पारा को मीना न कहो दौर ऐसा है कि पीने को भी
क्या क्या लोग ख़ुशी से अपनी बिकने पर तैयार हुए एक हमीं दीवाने निकले हम ही यहाँ पर
जाने क्या देखा था मैं ने ख़्वाब में फँस गया फिर जिस्म के गिर्दाब में, तेरा क्या तू
आहट पे कान दर पे नज़र इस तरह न थी एक एक पल की हम को ख़बर इस
ख़त के छोटे से तराशे में नहीं आएँगे ग़म ज़ियादा हैं लिफ़ाफ़े में नहीं आएँगे, हम न मजनूँ