क्या कहते क्या जी में था
क्या कहते क्या जी में था शोर बहुत बस्ती में था, पहली बूँद गिरी टप से फिर सब
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क्या कहते क्या जी में था शोर बहुत बस्ती में था, पहली बूँद गिरी टप से फिर सब
तीसरी आँख खुलेगी तो दिखाई देगा और कै दिन मेरा हमज़ाद जुदाई देगा ? वो न आएगा मगर
अचानक तेरी याद का सिलसिला अँधेरे की दीवार बन के गिरा, अभी कोई साया निकल आएगा ज़रा जिस्म
सोचते रहते हैं अक्सर रात में डूब क्यूँ जाते हैं मंज़र रात में ? किस ने लहराई हैं
धूप में सब रंग गहरे हो गए तितलियों के पर सुनहरे हो गए, सामने दीवार पर कुछ दाग़
कोई मौसम हो भले लगते थे दिन कहाँ इतने कड़े लगते थे ? ख़ुश तो पहले भी नहीं
दिन में परियाँ क्यूँ आती हैं ऐसी घड़ियाँ क्यूँ आती हैं ? अपना घर आने से पहले इतनी
सफ़र में सोचते रहते हैं छाँव आए कहीं ये धूप सारा समुंदर ही पी न जाए कहीं, मैं
कुछ तो इस दिल को सज़ा दी जाए उस की तस्वीर हटा दी जाए, ढूँढने में भी मज़ा
सर्दी में दिन सर्द मिला हर मौसम बेदर्द मिला, ऊँचे लम्बे पेड़ों का पत्ता पत्ता ज़र्द मिला, सोचते