ज़ब्त कर के हँसी को भूल गया

zabt kar ke hansi ko bhool gaya

ज़ब्त कर के हँसी को भूल गया मैं तो उस ज़ख़्म ही को भूल गया, ज़ात दर ज़ात

चलो बाद ए बहारी जा रही है

chalo baad e bahari jaa rahi hai

चलो बाद ए बहारी जा रही है पिया जी की सवारी जा रही है, शुमाल ए जावेदान ए

कोई हालत नहीं ये हालत है

koi haalat nahi ye halat hai

कोई हालत नहीं ये हालत है ये तो आशोब नाक सूरत है, अंजुमन में ये मेरी ख़ामोशी बुर्दबारी

उस के पहलू से लग के चलते हैं

us ke pahlu se lag ke chalte hain

उस के पहलू से लग के चलते हैं हम कहीं टालने से टलते हैं बंद है मय-कदों के

सीना दहक रहा हो तो क्या चुप रहे कोई

sina dahak raha ho to kya chup rahe koi

सीना दहक रहा हो तो क्या चुप रहे कोई क्यूँ चीख़ चीख़ कर न गला छील ले कोई

हाल ये है कि ख़्वाहिश ए पुर्सिश ए हाल भी नहीं

haal ye hai ki khwahish e pursish e haal bhi nahin

हाल ये है कि ख़्वाहिश ए पुर्सिश ए हाल भी नहीं उस का ख़याल भी नहीं अपना ख़याल

बहुत दिल को कुशादा कर लिया क्या

bahut dil ko kushaada kar liya kya

बहुत दिल को कुशादा कर लिया क्या ज़माने भर से वा’दा कर लिया क्या ? तो क्या सचमुच

आदमी वक़्त पर गया होगा

aadmi waqt par gaya hoga

आदमी वक़्त पर गया होगा वक़्त पहले गुज़र गया होगा, वो हमारी तरफ़ न देख के भी कोई

एक ही मुज़्दा सुब्ह लाती है

ek hi muzda subah laati hai

एक ही मुज़्दा सुब्ह लाती है धूप आँगन में फैल जाती है, रंग ए मौसम है और बाद

अभी एक शोर सा उठा है कहीं

abhi ek shor saa utha hai khain

अभी एक शोर सा उठा है कहीं कोई ख़ामोश हो गया है कहीं, है कुछ ऐसा कि जैसे