दयार ए दाग़ ओ बेख़ुद शहर ए देहली छोड़ कर तुझ को

dayaar e daag o bekhud shahar e dehli chod kar tujh ko

दयार ए दाग़ ओ बेख़ुद शहर ए देहली छोड़ कर तुझ को न था मा’लूम यूँ रोएगा दिल

कैसे कहें कि याद ए यार रात जा चुकी बहुत

kaise kahe ki yaad e yaar raat ja chuki bahut

कैसे कहें कि याद ए यार रात जा चुकी बहुत रात भी अपने साथ साथ आँसू बहा चुकी

हर गाम पर थे शम्स ओ क़मर उस दयार में

har gaam par the shams o qamar us dayaar me

हर गाम पर थे शम्स ओ क़मर उस दयार में कितने हसीं थे शाम ओ सहर उस दयार

घर के ज़िंदाँ से उसे फ़ुर्सत मिले तो आए भी

ghar ke zinda se use fursat mile to aaye bhi

घर के ज़िंदाँ से उसे फ़ुर्सत मिले तो आए भी जाँ फ़ज़ा बातों से आ के मेरा दिल

एक शख़्स बा ज़मीर मेरा यार मुसहफ़ी

ek shakhs ba zamir mera yaar musahafi

एक शख़्स बा ज़मीर मेरा यार मुसहफ़ी मेरी तरह वफ़ा का परस्तार मुसहफ़ी, रहता था कज कुलाह अमीरों

ग़ज़लें तो कही हैं कुछ हम ने उन से न कहा अहवाल तो क्या

gazalen to kahi hain kuch hum ne un se na kaha ahwal to kya

ग़ज़लें तो कही हैं कुछ हम ने उन से न कहा अहवाल तो क्या कल मिस्ल ए सितारा

मावरा ए जहाँ से आए हैं

maawara e jahan se aaye hain

मावरा ए जहाँ से आए हैं आज हम ख़ुमसिताँ से आए हैं, इस क़दर बे-रुख़ी से बात न

कितना सुकूत है रसन ओ दार की तरफ़

kitna sukut hai rasan o daar kee taraf

कितना सुकूत है रसन ओ दार की तरफ़ आता है कौन जुरअत ए इज़हार की तरफ़, दश्त ए

लोक गीतों का नगर याद आया

lok geeton ka nagar yaad aaya

लोक गीतों का नगर याद आया आज परदेस में घर याद आया, जब चले आए चमन ज़ार से

उस गली के लोगों को मुँह लगा के पछताए

us gali ke logon ko munh laga ke pachhtaaye

उस गली के लोगों को मुँह लगा के पछताए एक दर्द की ख़ातिर कितने दर्द अपनाए, थक के