ग़मों में कुछ कमी या कुछ इज़ाफ़ा कर रहे हैं
ग़मों में कुछ कमी या कुछ इज़ाफ़ा कर रहे हैं समझ में कुछ नहीं आता कि हम क्या
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ग़मों में कुछ कमी या कुछ इज़ाफ़ा कर रहे हैं समझ में कुछ नहीं आता कि हम क्या
एक ख़्वाब नींद का था सबब, जो नहीं रहा उस का क़लक़ है ऐसा कि मैं सो नहीं
अजब है रंग ए चमन जा ब जा उदासी है महक उदासी है बाद ए सबा उदासी है,
कोई मिला तो किसी और की कमी हुई है सो दिल ने बे तलबी इख़्तियार की हुई है,
क्या बताऊँ कि जो हंगामा बपा है मुझ में इन दिनों कोई बहुत सख़्त ख़फ़ा है मुझ में,
अपनी ख़बर, न उस का पता है, ये इश्क़ है जो था, नहीं है, और न था, है,
चलो तुम को मिलाता हूँ मैं उस मेहमान से पहले जो मेरे जिस्म में रहता था मेरी जान
मोहब्बत की रंगीनियाँ छोड़ आए तेरे शहर में एक जहाँ छोड़ आए, पहाड़ों की वो मस्त शादाब वादी
सर ए मिंबर वो ख़्वाबों के महल तामीर करते हैं इलाज ए ग़म नहीं करते फ़क़त तक़रीर करते
ग़ालिब ओ यगाना से लोग भी थे जब तन्हा हम से तय न होगी क्या मंज़िल ए अदब