आदमी ही आदमी के बीच में आने लगा
आदमी ही आदमी के बीच में आने लगा फिर वही गुज़रा ज़माना ख़ुद को दुहराने लगा, एक अदना
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आदमी ही आदमी के बीच में आने लगा फिर वही गुज़रा ज़माना ख़ुद को दुहराने लगा, एक अदना
काजू भुने प्लेट में व्हिस्की गिलास में उतरा है रामराज विधायक निवास में, पक्के समाजवादी हैं तस्कर हों
तुम्हारी फ़ाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है मगर ये आँकड़ें झूठे हैं ये दावा किताबी है, उधर
आँख पर पट्टी रहे और अक़्ल पर ताला रहे अपने शाहे वक़्त का यूँ मर्तबा आला रहे, देखने
सौ में सत्तर आदमी फ़िलहाल जब नाशाद हैं दिल रखकर हाथ कहिए देश क्या आज़ाद है ? कोठियों
वेद में जिनका हवाला हाशिए पर भी नहीं वे अभागे आस्था विश्वास लेकर क्या करें ? लोक रंजन
जो डलहौज़ी न कर पाया वो ये हुक्काम कर देंगे कमीशन दो तो हिंदुस्तान को नीलाम कर देंगे,
जो उलझकर रह गई है फ़ाइलों के जाल में गाँव तक वह रौशनी आएगी कितने साल में ?
ये अमीरों से हमारी फ़ैसलाकुन जंग थी फिर कहाँ से बीच में मस्जिद व मंदिर आ गए ?
घर पे ठंडे चूल्हे पर अगर ख़ाली पतीली है बताओं कैसे लिख दूँ धूप फागुन की नशीली है