जो पूछती हो तो सुनो ! कैसे बसर होती है
जो पूछती हो तो सुनो ! कैसे बसर होती है रात खैरात की, सदके की सहर होती है,
Sad Poetry
जो पूछती हो तो सुनो ! कैसे बसर होती है रात खैरात की, सदके की सहर होती है,
बड़े बड़े शहरों की अब यही पहचान है ऊँची इमारतें और छोटे छोटे इन्सान है, अहल ए शहर
काली रात के सहराओं में नूर सिपारा लिखा था जिस ने शहर की दीवारों पर पहला ना’रा लिखा
उधर की शय इधर कर दी गई है ज़मीं ज़ेर ओ ज़बर कर दी गई है, ये काली
न घर है कोई, न सामान कुछ रहा बाक़ी नहीं है कोई भी दुनिया में सिलसिला बाक़ी, ये
सवालो के बदले लहज़े ऐसे कि हमें जानते ही न हो जैसे, मिजाज़ मौसम भी न बदले वो
ये अमीरों से हमारी फ़ैसलाकुन जंग थी फिर कहाँ से बीच में मस्ज़िद ओ मंदिर आ गए ?
कुछ बात है कि आज ख्याल ए यार आया एक बार नहीं बल्कि बार बार आया, भूल चुका
भला ग़मों से कहाँ हार जाने वाले थे हम आँसुओं की तरह मुस्कुराने वाले थे, हम ही ने
उदास एक मुझी को तो कर नही जाता वह मुझसे रुठ के अपने भी घर नही जाता, वह