इल्म ओ हुनर से क़ौम को रग़बत नहीं रही

ilm o hunar se qaum ko ragbat nahin

इल्म ओ हुनर से क़ौम को रग़बत नहीं रही इस पर शिकायतें कि फ़ज़ीलत नहीं रही, बदलेगा क्या

हुज़ूर हद भी कोई होवे इंतिज़ारी की

huzur had bhi koi howe intizari ki

हुज़ूर हद भी कोई होवे इंतिज़ारी की कि इंतिहा हुई जावे है बे क़रारी की, न कुछ कहो

ग़म्ज़ा नहीं होता कि इशारा नहीं होता

gamza nahin hota ki ishara nahin hota

ग़म्ज़ा नहीं होता कि इशारा नहीं होता आँख उन से जो मिलती है तो क्या क्या नहीं होता

आह जो दिल से निकाली जाएगी

aah jo dil se nikaali jayegi

आह जो दिल से निकाली जाएगी क्या समझते हो कि ख़ाली जाएगी ? इस नज़ाकत पर ये शमशीर

फिरते हैं जिस के वास्ते हम दर ब दर अभी

firte hai jis ke vaaste hum dar ba dar

फिरते हैं जिस के वास्ते हम दर ब दर अभी क्या कीजिए नहीं है उसे कुछ ख़बर अभी,

हम से आँखें मिलाइए तो कहें

hum se aankhen milaieye to kahen

हम से आँखें मिलाइए तो कहें अपना जल्वा दिखाइए तो कहें, रस्म ही है अगर तो फिर रस्मन

दोस्ती का फ़रेब ही खाएँ

dosti ka fareb hi khaaye aao kagaz ki

दोस्ती का फ़रेब ही खाएँ आओ काग़ज़ की नाव तैराएँ, हम अगर रहरवी का अज़्म करें मंज़िलें खिंच

आया है हर चढ़ाई के बाद एक उतार भी

aaya hai har chadhaai ke baad ek uttar bhi

आया है हर चढ़ाई के बाद एक उतार भी पस्ती से हम कनार मिले कोहसार भी, आख़िर को

नक़ाब ए रुख़ उठाया जा रहा है

naqab e rookh uthaya jaa raha hai

नक़ाब ए रुख़ उठाया जा रहा है घटा में चाँद आया जा रहा है, ज़माने की निगाहों में

एक उम्र गुजारी है जिसके साये में

ek umr guzari hai jiske saaye me

जब से वो मुझे भुलाये जा रही है कोई बला मेरा दिल खाए जा रही है, एक उम्र