घर जब बना लिया तेरे दर पर कहे बग़ैर…
घर जब बना लिया तेरे दर पर कहे बग़ैर जानेगा अब भी तू न मेरा …
घर जब बना लिया तेरे दर पर कहे बग़ैर जानेगा अब भी तू न मेरा …
अब तो बस ये जान है मौला बाक़ी झूठी शान है मौला, गम का कोई …
जिनके घरो में आज भी चूल्हा नहीं जला खाना गर हम उनको खिलाएँ तो ईद …
हम एक ख़ुदा के बन्दे है और एक जहाँ में बसते है, रब भी जब …
हर एक आवाज़ अब उर्दू को फ़रियादी बताती है यह पगली फिर भी अब तक …
उर्दू है मेरा नाम मैं ख़ुसरो की पहेली मैं मीर की हमराज़ हूँ ग़ालिब की …
चिड़ियाँ होती है बेटियाँ मगर पंख नहीं होते बेटियों के, मायके भी होते है,ससराल भी …
जिधर देखते है हर तरफ गमो के अम्बार देखते है हर किसी को रंज़ ओ …
कोई तो फूल खिलाए दुआ के लहज़े मेंअज़ब तरह की घुटन है हवा के लहज़े …
हर नाला तिरे दर्द से अब और ही कुछ हैहर नग़्मा सर-ए-बज़्म-ए-तरब और ही कुछ …