दो चार क्या हैं सारे ज़माने के बावजूद

do chaar kya hai saare zamane ke bawazood

दो चार क्या हैं सारे ज़माने के बावजूद हम मिट नहीं सकेंगे मिटाने के बावजूद, ये राज़ काश

तारीफ़ उस ख़ुदा की जिसने जहाँ बनाया

tarif us khuda ki jisne jahan banaya

तारीफ़ उस ख़ुदा की जिसने जहाँ बनाया कैसी हसीं ज़मीं बनाई क्या आसमां बनाया, मिट्टी से बेल बूटे

क़ुदरत का करिश्मा भी क्या बेमिसाल है

क़ुदरत का करिश्मा भी

क़ुदरत का करिश्मा भी क्या बेमिसाल है चेहरे सफ़ेद काले पर खून सबका लाल है, हिन्दू है यहाँ

ये क़ुदरत भी अब तबाही की हुई शौक़ीन

ye-qudrat-bhi-ab

ये क़ुदरत भी अब तबाही की हुई शौक़ीन लगती है ऐ दौर ए ज़दीद साज़िश तेरी बहुत संगीन

ये न पूछो कि कैसा ये हिन्दुस्तान होना चाहिए

ye naa pucho kaisa hindustan hona chahiye

ये न पूछो कि कैसा ये हिन्दुस्तान होना चाहिए खत्म पहले मज़हब का घमासान होना चाहिए, इन्सान को

एक मंज़र यूं नजर आया कि मैं भी डर गया…

ek manzar yun nazar aaya ki main bhi dar gaya

  एक मंज़र यूं नजर आया कि मैं भी डर गया हाथ में रोटी थी जिसके वो भिखारी

घर जब बना लिया तेरे दर पर कहे बग़ैर…

घर जब बना लिया

घर जब बना लिया तेरे दर पर कहे बग़ैर जानेगा अब भी तू न मेरा घर कहे बग़ैर,

अब तो बस ये जान है मौला बाक़ी झूठी शान है मौला…

ab to bas ye jaan hai maula

अब तो बस ये जान है मौला बाक़ी झूठी शान है मौला, गम का कोई निशाँ नहीं है

जिनके घरो में आज भी चूल्हा नहीं जला…

khana gar ham unko khilaye to eid hai

जिनके घरो में आज भी चूल्हा नहीं जला खाना गर हम उनको खिलाएँ तो ईद है, पानी नहीं

हम एक ख़ुदा के बन्दे है और एक जहाँ में बसते है

hum ek khuda ke bande aur ek jahan me baste hai

हम एक ख़ुदा के बन्दे है और एक जहाँ में बसते है, रब भी जब चाहे हम साथ