दुनियाँ ए अक़ीदत में अजब रस्म चली है
दुनियाँ ए अक़ीदत में अजब रस्म चली है जो दश्त में मजनूँ था वो मरकज़ …
दुनियाँ ए अक़ीदत में अजब रस्म चली है जो दश्त में मजनूँ था वो मरकज़ …
ग़म ए जहाँ को शर्मसार करने वाले क्या हुए वो सारी उम्र इंतिज़ार करने वाले …
सरहदों पर है अपने जवानों का गम और बस्ती में जलते मकानों का गम, फिर …
उनसे मिलिए जो यहाँ फेर बदल वाले है हमसे मत बोलिए हम लोग गज़ल वाले …
आरज़ी ताक़तें तुम्हारी है पर ख़ुदा हमारा है अपने अक्स पर न इतराओ आईना हमारा …
कैसी महफ़िल है ज़ालिम तेरे शहर में यहाँ हर कोई ही डूबा हुआ है ज़हर …
ख़ुद को इतना जो हवादार समझ रखा है क्या हमें रेत की दीवार समझ रखा …
जब भी इस शहर में कमरे से मैं बाहर निकला मेरे स्वागत को हर एक …
वो शख़्स कि मैं जिस से मोहब्बत नहीं करता हँसता है मुझे देख के नफ़रत …
क्यूँ ज़मीं है आज प्यासी इस तरह ? हो रही नदियाँ सियासी इस तरह, जान …