कुछ तो हवा भी सर्द थी कुछ था तेरा ख़याल भी
कुछ तो हवा भी सर्द थी कुछ था तेरा ख़याल भी दिल को ख़ुशी के साथ साथ होता
Parveen Shakir
कुछ तो हवा भी सर्द थी कुछ था तेरा ख़याल भी दिल को ख़ुशी के साथ साथ होता
एक सूरज था कि तारों के घराने से उठा आँख हैरान है क्या शख़्स ज़माने से उठा, किस
जुस्तुजू खोए हुओं की उम्र भर करते रहे चाँद के हमराह हर शब सफ़र करते रहे, रास्तों का
अब भला छोड़ के घर क्या करते शाम के वक़्त सफ़र क्या करते, तेरी मसरूफ़ियतें जानते हैं अपने
शाम आई तिरी यादों के सितारे निकले रंग ही ग़म के नहीं नक़्श भी प्यारे निकले, एक मौहूम
ताज़ा मोहब्बतों का नशा जिस्म-ओ-जाँ में हैफिर मौसम-ए-बहार मिरे गुल्सिताँ में है, इक ख़्वाब है कि बार-ए-दिगर देखते