अगरचे मैं एक चटान सा आदमी रहा हूँ
अगरचे मैं एक चटान सा आदमी रहा हूँ मगर तेरे बाद हौसला है कि जी रहा हूँ, वो
Occassional Poetry
अगरचे मैं एक चटान सा आदमी रहा हूँ मगर तेरे बाद हौसला है कि जी रहा हूँ, वो
जब से उस ने शहर को छोड़ा हर रस्ता सुनसान हुआ अपना क्या है सारे शहर का एक
कभी पहली बार स्कूल जाने में डर लगता था आज अकेले ही ज़माना घूम लेते हैं, पहले फर्स्ट
दिल में बंदों के बहुत ख़ौफ़ ए ख़ुदा था पहले ये ज़माना कभी इतना न बुरा था पहले,
इश्क़ गर हाथ छुड़ाए तो छुड़ाने देना कार ए वहशत पे मगर आँच न आने देना, यूँ भी
सुख़न के शौक़ में तौहीन हर्फ़ की नहीं की कि हम ने दाद की ख़्वाहिश में शाएरी नहीं
हर एक शक्ल में सूरत नई मलाल की है हमारे चारों तरफ़ रौशनी मलाल की है, हम अपने
चुप है आग़ाज़ में, फिर शोर ए अजल पड़ता है और कहीं बीच में इम्कान का पल पड़ता
मेरे सिवा भी कोई गिरफ़्तार मुझ में है या फिर मेरा वजूद ही बेज़ार मुझ में है, मेरी
वो चराग़ ए जाँ कि चराग़ था कहीं रहगुज़ार में बुझ गया मैं जो एक शो’लानज़ाद था हवस