देखा जो हुस्न ए यार तबीअत मचल गई
देखा जो हुस्न ए यार तबीअत मचल गई आँखों का था क़ुसूर छुरी दिल पे चल गई, हम
Occassional Poetry
देखा जो हुस्न ए यार तबीअत मचल गई आँखों का था क़ुसूर छुरी दिल पे चल गई, हम
बहुत रहा है कभी लुत्फ़ ए यार हम पर भी गुज़र चुकी है ये फ़स्ल ए बहार हम
एक बोसा दीजिए मेरा ईमान लीजिए गो बुत हैं आप बहर ए ख़ुदा मान लीजिए, दिल ले के
हूँ मैं परवाना मगर शम्अ तो हो रात तो हो जान देने को हूँ मौजूद कोई बात तो
हया से सर झुका लेना अदा से मुस्कुरा देना हसीनों को भी कितना सहल है बिजली गिरा देना,
लहरा के झूम झूम के ला मुस्कुरा के ला फूलों के रस में चाँद की किरनें मिला के
उदासी आसमाँ है दिल मेरा कितना अकेला है परिंदा शाम के पुल पर बहुत ख़ामोश बैठा है, मैं
हम हैं और उन की ख़ुशी है आज कल ज़िंदगी ही ज़िंदगी है आज कल, ग़म का हर
दिल में एक लहर सी उठी है अभी कोई ताज़ा हवा चली है अभी, कुछ तो नाज़ुक मिज़ाज
शाम से आँख में नमी सी है आज फिर आप की कमी सी है, दफ़्न कर दो हमें