ख़िज़ाँ रसीदा चमन में अक्सर
ख़िज़ाँ रसीदा चमन में अक्सर खिला खिला सा गुलाब देखा, गज़ब का हुस्न ओ शबाब …
ख़िज़ाँ रसीदा चमन में अक्सर खिला खिला सा गुलाब देखा, गज़ब का हुस्न ओ शबाब …
आसमान से इनायतें न तुझे मिलीं न मुझे मिलीं मुहब्बतों से राहतें न तुझे मिलीं …
किस क़दर साहब ए क़िरदार समझते हैं मुझे मुझको था ज़ो’म मेरे यार समझते हैं …
नींद नहीं आती कितनी अकेली हो गई रफ़ू करते करते ज़िन्दगी पहेली हो गई, ये …
हर एक घर में दिया भी जले अनाज भी हो अगर न हो कहीं ऐसा …
नई नई आँखें हों तो हर मंज़र अच्छा लगता है कुछ दिन शहर में घूमे …
मुँह की बात सुने हर कोई दिल के दर्द को जाने कौन आवाज़ों के बाज़ारों …
हर तरफ़ हर जगह बेशुमार आदमी फिर भी तन्हाइयों का शिकार आदमी, सुब्ह से शाम …
तू ख़ुश है गर मुझ से जुदा होने पर कोई गिला नहीं फिर तेरे बे …