अनगिनत फूल इंतिख़ाब गुलाब
अनगिनत फूल इंतिख़ाब गुलाब आदतें कर गया ख़राब गुलाब, वो है नाराज़ उस की चौखट पर ले के
General Poetry
अनगिनत फूल इंतिख़ाब गुलाब आदतें कर गया ख़राब गुलाब, वो है नाराज़ उस की चौखट पर ले के
मेरे क़ातिल को पुकारो कि मैं जिंदा हूँ अभी फिर से मक़तल को सँवारों कि मैं जिंदा हूँ
कोई हो दर्द ए मुसलसल तो नींद आती है बदन में हो कोई हलचल तो नींद आती है,
कुछ न इस काम में किफ़ायत की मैं ने दिल खोल कर मोहब्बत की, सस्ते दामों कहाँ मैं
शजर में शजर सा बचा कुछ नहीं हवाओं से फिर भी गिला कुछ नहीं, कहा क्या गुज़रते हुए
फ़ैसले वो न जाने कैसे थे रात की रात घर से निकले थे, याद आते हैं अब भी
इस बार तो ग़ुरूर ए हुनर भी निकल गया बच कर वो मुझ से बार ए दिगर भी
रास्ते अपनी नज़र बदला किए हम तुम्हारा रास्ता देखा किए, अहल ए दिल सहरा में गुम होते रहे
बला वो टल गई सदक़े में जिस के शहर चढ़े हमें डुबो के न अब कोई ख़ूनी नहर
हर चमकती क़ुर्बत में एक फ़ासला देखूँ कौन आने वाला है किस का रास्ता देखूँ ? शाम का