ज़बाँ कुछ और कहती है नज़र…
ज़बाँ कुछ और कहती है नज़र कुछ और कहती है मगर ये ज़िंदगी की रहगुज़र कुछ और कहती …
ज़बाँ कुछ और कहती है नज़र कुछ और कहती है मगर ये ज़िंदगी की रहगुज़र कुछ और कहती …
सीनों में अगर होती कुछ प्यार की गुंजाइश हाथों में निकलती क्यूँ तलवार की गुंजाइश, पिछड़े हुए गाँव …
बादशाहों को सिखाया है क़लंदर होना आप आसान समझते हैं मुनव्वर होना, एक आँसू भी हुकूमत के लिए …
यहाँ शोर बच्चे मचाते नहीं हैं परिंदे भी अब गीत गाते नहीं हैं, वफ़ा के फ़लक पर मोहब्बत …
सौ में सत्तर आदमी फ़िलहाल जब नाशाद हैं दिल रखकर हाथ कहिए देश क्या आज़ाद है ? कोठियों …
ख़ुद्दार मेरे शहर का फाक़ो से मर गया राशन जो आ रहा था वो अफ़सर के घर गया, …
होंठों पे उसके जुम्बिश ए इंकार भी नहीं आँखों में कोई शोख़ी ए इक़रार भी नहीं, बस्ती में …
बिस्तर ए मर्ग पर ज़िंदगी की तलब जैसे ज़ुल्मत में हो रौशनी की तलब, कल तलक कमतरी जिन …
हर आह ग़म ए दिल की ग़म्माज़ नहीं होती और वाह मसर्रत का आग़ाज़ नहीं होती, जो रोक …
हम से दीवानों को असरी आगही डसती रही खोखली तहज़ीब की फ़र्ज़ानगी डसती रही, शोला ए नफ़रत तो …