ऐसा लगता है समझदार है दुनिया सारी
ऐसा लगता है समझदार है दुनिया सारी मैं हूँ इस पार तो उस पार है दुनिया सारी, इस
General Poetry
ऐसा लगता है समझदार है दुनिया सारी मैं हूँ इस पार तो उस पार है दुनिया सारी, इस
हंगामा है क्यूँ बरपा थोड़ी सी जो पी ली है डाका तो नहीं मारा चोरी तो नहीं की
आँखें मुझे तलवों से वो मलने नहीं देते अरमान मेरे दिल के निकलने नहीं देते, ख़ातिर से तेरी
ऐ मेरी जान तुझे और बदलना होगा फिर मेरे साथ कड़ी धूप में चलना होगा, अपने पैरों पे
इल्म ओ हुनर से क़ौम को रग़बत नहीं रही इस पर शिकायतें कि फ़ज़ीलत नहीं रही, बदलेगा क्या
हुज़ूर हद भी कोई होवे इंतिज़ारी की कि इंतिहा हुई जावे है बे क़रारी की, न कुछ कहो
ग़म्ज़ा नहीं होता कि इशारा नहीं होता आँख उन से जो मिलती है तो क्या क्या नहीं होता
आह जो दिल से निकाली जाएगी क्या समझते हो कि ख़ाली जाएगी ? इस नज़ाकत पर ये शमशीर
फिरते हैं जिस के वास्ते हम दर ब दर अभी क्या कीजिए नहीं है उसे कुछ ख़बर अभी,
हम से आँखें मिलाइए तो कहें अपना जल्वा दिखाइए तो कहें, रस्म ही है अगर तो फिर रस्मन