दिन एक के बाद एक गुज़रते हुए भी देख
दिन एक के बाद एक गुज़रते हुए भी देख एक दिन तू अपने आप को मरते हुए भी
General Poetry
दिन एक के बाद एक गुज़रते हुए भी देख एक दिन तू अपने आप को मरते हुए भी
और बाज़ार से क्या ले जाऊँ पहली बारिश का मज़ा ले जाऊँ कुछ तो सौग़ात दूँ घर वालों
धूप ने गुज़ारिश की एक बूँद बारिश की, लो गले पड़े काँटे क्यूँ गुलों की ख़्वाहिश की ?
लबों पर यूँही सी हँसी भेज दे मुझे मेरी पहली ख़ुशी भेज दे, अँधेरा है कैसे तेरा ख़त
अच्छे दिन कब आएँगे क्या यूँ ही मर जाएँगे ? अपने आप को ख़्वाबों से कब तक हम
नींद रातों की उड़ा देते हैं हम सितारों को दुआ देते हैं, रोज़ अच्छे नहीं लगते आँसू ख़ास
है कोई बैर सा उस को मेरी तदबीर के साथ अब कहाँ तक कोई झगड़ा करे तक़दीर के
एक ख़ला अंदर उतर जाने दिया ख़ुद को ख़ालीपन से भर जाने दिया, जान मुड़ कर देखती थी
ग़म को दिल का क़रार कर लिया जाए इस ख़िज़ाँ को बहार कर लिया जाए, फिर जुनूँ को
अक्स मौजूद न साया मौजूद मुझ में अब कुछ नहीं मेरा मौजूद, निकल आता हूँ मैं अक्सर बाहर