नहीं कि मुझको क़यामत का ए’तिक़ाद नहीं…
नहीं कि मुझको क़यामत का ए’तिक़ाद नहीं शब-ए-फ़िराक़ से रोज़-ए-जज़ा ज़ियाद नहीं, कोई कहे कि शब-ए-मह में क्या
Mirza Ghalib
नहीं कि मुझको क़यामत का ए’तिक़ाद नहीं शब-ए-फ़िराक़ से रोज़-ए-जज़ा ज़ियाद नहीं, कोई कहे कि शब-ए-मह में क्या
नफ़स न अंजुमन-ए-आरज़ू से बाहर खींच अगर शराब नहीं इंतिज़ार-ए-साग़र खींच, कमाल-ए-गर्मी-ए-सई-ए-तलाश-ए-दीद न पूछ ब-रंग-ए-ख़ार मिरे आइने से
न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता डुबोया मुझ को होने ने न