पैगम्बरों की राह पर चल कर न देखना
पैगम्बरों की राह पर चल कर न देखना या फिर चलो तो राह के पत्थर …
पैगम्बरों की राह पर चल कर न देखना या फिर चलो तो राह के पत्थर …
नक़ाब चेहरों पे सजाये हुए आ जाते है अपनी करतूत छुपाये हुए आ जाते है, …
कहीं पे सूखा कहीं चारों सिम्त पानी है गरीब लोगों पे क़ुदरत की मेहरबानी है, …
लाई है किस मक़ाम पे ये ज़िंदगी मुझे महसूस हो रही है ख़ुद अपनी कमी …
हर एक बात न क्यूँ ज़हर सी हमारी लगे कि हमको दस्त ए ज़माना से …
आदम की जात होकर इल्म बिसरा रहे हो क्यूँ मज़लूम ओ गरीब को बेवजह सता …
इंसानी सोच का मौसम बदलता रहता है फ़ितूरी दिमाग बेकाम भी चलता रहता है, ज़रा …
मैं सुन रहा हूँ जो दुनियाँ सुना रही है मुझे हँसी तो अपनी ख़ामोशी पे …