बड़े बड़े शहरों की अब यही पहचान है
बड़े बड़े शहरों की अब यही पहचान है ऊँची इमारतें और छोटे छोटे इन्सान है, …
बड़े बड़े शहरों की अब यही पहचान है ऊँची इमारतें और छोटे छोटे इन्सान है, …
काली रात के सहराओं में नूर सिपारा लिखा था जिस ने शहर की दीवारों पर …
शबनम है कि धोखा है कि झरना है कि तुम हो दिल दश्त में एक …
जिस से मिल बैठे लगी वो शक्ल पहचानी हुई आज तक हमसे यही बस एक …
मैंने दुनियाँ से, मुझसे दुनियाँ ने सैकड़ो बार बेवफ़ाई की, आसमां चूमता है मेरे क़दम …
दिल चाहे कि आज कुछ सुनहरा लिखूँ मैं ज़ात पे मेरी एक पैरा लिखूँ, मैं …
न घर है कोई, न सामान कुछ रहा बाक़ी नहीं है कोई भी दुनिया में …
किस तवक़्क़ो’ पे क्या उठा रखिए ? दिल सलामत नहीं तो क्या रखिए ? लिखिए …
किस को मालूम है क्या होगा नज़र से पहले होगा कोई भी जहाँ ज़ात ए …