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Life Poetry

हर तरफ़ हर जगह बेशुमार आदमी

har taraf har jagah beshum

हर तरफ़ हर जगह बेशुमार आदमी फिर भी तन्हाइयों का शिकार आदमी, सुब्ह से शाम तक बोझ ढोता …

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जो हो एक बार वो हर बार हो ऐसा नहीं होता

jo ho ek bar wo ho har baar aisa nahi hota

जो हो एक बार वो हर बार हो ऐसा नहीं होता हमेशा एक ही से प्यार हो ऐसा …

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सीधे साधे लोग थे पहले घर भी सादा होता था

sidhe saadhe log the pahle

सीधे साधे लोग थे पहले घर भी सादा होता था कमरे कम होते थे और दालान कुशादा होता …

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हर दिन है मुहब्बत का, हर रात मुहब्बत की

har din hai muhabbat ka har raat muhabbat ke

हर दिन है मुहब्बत का, हर रात मुहब्बत की हम अहल ए मुहब्बत में, हर बात मुहब्बत की, …

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दिलजलों से दिल्लगी अच्छी नहीं

diljalon se dillagi achchi nahin

दिलजलों से दिल्लगी अच्छी नहीं रोने वालों से हँसी अच्छी नहीं, मुँह बनाता है बुरा क्यूँ वक़्त ए …

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मेरी तन्हाई बढ़ाते हैं चले जाते है

meri tanhaai badhaate hai chale jaate hai

मेरी तन्हाई बढ़ाते हैं चले जाते है हँस तालाब पे आते हैं चले जाते हैं, इसलिए अब मैं …

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खींच कर रात की दीवार पे मारे होते

khich kar raat ki deewar pe

खींच कर रात की दीवार पे मारे होते मेरे हाथों में अगर चाँद सितारे होते, यार ! क्या …

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हो चराग़ ए इल्म रौशन ठीक से

ho charag e ilm raushan thik se

हो चराग़ ए इल्म रौशन ठीक से लोग वाक़िफ़ हों नई तकनीक से, इल्म से रौशन तो है …

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मोड़ था कैसा तुझे था खोने वाला मैं

mod tha kaisa

मोड़ था कैसा तुझे था खोने वाला मैं रो ही पड़ा हूँ कभी न रोने वाला मैं, क्या …

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फूल का शाख़ पे आना भी बुरा लगता है

phool ka shaakh pe aana bhi bura lagta hai

फूल का शाख़ पे आना भी बुरा लगता है तू नहीं है तो ज़माना भी बुरा लगता है, …

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तुझे पुकारा है बे

तुझे पुकारा है बे इरादा

फिर हरीफ़ ए बहार

फिर हरीफ़ ए बहार हो बैठे

हर सम्त परेशाँ तिरी

हर सम्त परेशाँ तिरी आमद के क़रीने

सोच बदल जाती है

सोच बदल जाती है,हालात बदल जाते हैं

उजड़े हुए हड़प्पा के

उजड़े हुए हड़प्पा के आसार की तरह

निगाह ए यार के

निगाह ए यार के बदलने में कुछ देर नहीं लगती

कोई सुनता ही नहीं

कोई सुनता ही नहीं किस को सुनाने लग जाएँ

जानता हूँ कि तुझे

जानता हूँ कि तुझे साथ तो रखते है कई

मेरे उसके दरमियाँ ये

मेरे उसके दरमियाँ ये राब्ता है और बस

चल निकलती हैं ग़म

चल निकलती हैं ग़म ए यार से बातें क्या क्या

ऐसा है कि सब ख़्वाब

ऐसा है कि सब ख़्वाब मुसलसल नहीं होते

अब तक यही सुना

अब तक यही सुना था कि बाज़ार बिक गए

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तुझे पुकारा है बे

तुझे पुकारा है बे इरादा

फिर हरीफ़ ए बहार

फिर हरीफ़ ए बहार हो बैठे

हर सम्त परेशाँ तिरी

हर सम्त परेशाँ तिरी आमद के क़रीने