किसी के नाम रुत्बा और न ख़द्द ओ ख़ाल से मतलब
किसी के नाम रुत्बा और न ख़द्द ओ ख़ाल से मतलब किरामन कातिबीं को ख़ल्क़ के आमाल से
Life Poetry
किसी के नाम रुत्बा और न ख़द्द ओ ख़ाल से मतलब किरामन कातिबीं को ख़ल्क़ के आमाल से
सहर जब मुस्कुराई तब कहीं तारों को नींद आई बहुत मुश्किल से कल शब दर्द के मारों को
न तो उस्लूब न अंदाज़ गिराँ गुज़रा है उस पे मेरा फ़न ए परवाज़ गिराँ गुज़रा है, ये
बेबसी से हाथ अपने मलने वाले हम नहीं मेहरबानी पर किसी की पलने वाले हम नहीं, रहगुज़र अपनी
वो हर मक़ाम से पहले वो हर मक़ाम के बाद सहर थी शाम से पहले सहर है शाम
हादसे ज़ीस्त की तौक़ीर बढ़ा देते हैं ऐ ग़म ए यार तुझे हम तो दुआ देते हैं, तेरे
होंठों पे हँसी आँख में तारों की लड़ी है वहशत बड़े दिलचस्प दो राहे पे खड़ी है, दिल
ये शीशे, ये सपने, ये रिश्ते ये धागे किसे क्या ख़बर है कहाँ टूट जायें ? मुहब्बत के
आसमानों से न उतरेगा सहीफ़ा कोई ऐ ज़मीं ढूँढ ले अब अपना मसीहा कोई, फिर दर ए दिल
दो जहाँ के हुस्न का अरमान आधा रह गया इस सदी के शोर में इंसान आधा रह गया,