ख़्वाबों की तरह गोया बिखर जाएँगे हम भी
ख़्वाबों की तरह गोया बिखर जाएँगे हम भी चुप चाप किसी रोज़ गुज़र जाएँगे हम भी, हम जैसे
ख़्वाबों की तरह गोया बिखर जाएँगे हम भी चुप चाप किसी रोज़ गुज़र जाएँगे हम भी, हम जैसे
साया ए ज़ुल्फ़ नहीं शोला ए रुख़्सार नहीं क्या तेरे शहर में सरमाया ए दीदार नहीं, वक़्त पड़
हम अहल ए आरज़ू पे अजब वक़्त आ पड़ा हर हर क़दम पे खेल नया खेलना पड़ा, अपना
सहराओं में जा पहुँची है शहरों से निकल कर अल्फ़ाज़ की ख़ुश्बू मेंरे होंठों से निकल कर, सीने
दास्तानों में वो जादू है न तफ़सीरों में है जो तेरी आँखों की बेआवाज़ तक़रीरों में है, राएगाँ
फ़िक्र का सब्ज़ा मिला जज़्बात की काई मिली ज़ेहन के तालाब पर क्या नक़्श आराई मिली, मुतमइन होता
ख़ुश्बू मेंरे बदन में रची है ख़लाओं की मैं सैर कर रहा हूँ अभी तक फ़ज़ाओं की, मत
फूलों की है तख़्लीक़ कि शोलों से बना है कुंदन सा तेरा जिस्म जो ख़ुश्बू में बसा है,
पड़ा हुआ मैं किसी आइने के घर में हूँ ये तेरा शहर है या ख़्वाब के नगर में
यूँ बने सँवरे हुए से फूल हैं गुलज़ार में सैर को निकली हों जैसे लड़कियाँ बाज़ार में, ये