दुख का एहसास न मारा जाए

दुख का एहसास न मारा जाए
आज जी खोल के हारा जाए,

इन मकानों में कोई भूत भी है
रात के वक़्त पुकारा जाए,

सोचने बैठें तो इस दुनिया में
एक लम्हा न गुज़ारा जाए,

ढूँढता हूँ मैं ज़मीं अच्छी सी
ये बदन जिस में उतारा जाए,

साथ चलता हुआ साया अपना
एक पत्थर उसे मारा जाए,

हम यगाना तो नहीं हैं अल्वी
नाव जाए कि किनारा जाए..!!

~मोहम्मद अल्वी

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