वो काश मान लेता कभी हमसफ़र मुझे

वो काश मान लेता

वो काश मान लेता कभी हमसफ़र मुझे तो रास्तो के पेच का होता न डर मुझे, बेशक ये

वो हमसफ़र था मगर उससे हम नवाई न थी

wo humsafar tha magar usse hamnawai na

वो हमसफ़र था मगर उससे हम नवाई न थी कि धूप छांव का आलम रहा जुदाई न थी,

मुझे तन्हाई के ग़म से बचा लेते तो…

मुझे तन्हाई के ग़म

मुझे तन्हाई के ग़म से बचा लेते तो अच्छा था सफ़र में हमसफ़र अपना बना लेते तो अच्छा

बीच सफ़र में छोड़ गया हमसफ़र…

bich safar me chhod gaya

बीच सफ़र में छोड़ गया हमसफ़र हमसफ़र ना रहा इतना दर्द दिया हमदर्द ने कि हमदर्द हमदर्द ना

अब मुहब्बत का इरादा बदल जाना भी…

अब मुहब्बत का इरादा

अब मुहब्बत का इरादा बदल जाना भी मुश्किल है उन्हें खोना भी मुश्किल,उन्हें पाना भी मुश्किल है, ज़रा

जिन्हें कर सका न क़ुबूल मैं…

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जिन्हें कर सका न क़ुबूल मैंवो शरीक़ राह ए सफ़र हुए, जो मेरी तलब मेरी आस थेवही लोग