तक़दीर की गर्दिश क्या कम थी इस पर ये क़यामत कर बैठे
तक़दीर की गर्दिश क्या कम थी इस पर ये क़यामत कर बैठे बेताबी ए दिल जब हद से
Sad Poetry
तक़दीर की गर्दिश क्या कम थी इस पर ये क़यामत कर बैठे बेताबी ए दिल जब हद से
दुनिया की रिवायात से बेगाना नहीं हूँ छेड़ो न मुझे मैं कोई दीवाना नहीं हूँ, इस कसरत ए
मुझे दुनिया वालो शराबी न समझो मैं पीता नहीं हूँ पिलाई गई है जहाँ बेख़ुदी में क़दम लड़खड़ाए
अब बंद जो इस अब्र ए गुहर बार को लग जाए कुछ धूप हमारे दर ओ दीवार को
तल्ख़ हालात में जीने का सबब होते हैं ख़त जो छुप छुप के लिखे जाएँ अजब होते हैं,
तुम शुजाअत के कहाँ क़िस्से सुनाने लग गए जीतने आए थे जो दुनिया ठिकाने लग गए, उड़ रही
वो लोग आएँ जिन्हें हौसला ज़्यादा है ग़ज़ल में ख़ून का मसरफ़ ज़रा ज़्यादा है, सब अपने आप
न कोई ख़्वाब कमाया न आँख ख़ाली हुई तुम्हारे साथ हमारी भी रात काली हुई, ख़ुदा का शुक्र
किसी का साथ मियाँ जी सदा नहीं रहा है मगर दिलों को अभी सब्र आ नहीं रहा है,
कोई भी दार से ज़िंदा नहीं उतरता है मगर जुनून हमारा नहीं उतरता है, तबाह कर दिया अहबाब