उठाओ संग कि हम में सनक बहुत है अभी
उठाओ संग कि हम में सनक बहुत है अभी हमारे गर्म लहू में नमक बहुत है अभी, उतर
Sad Poetry
उठाओ संग कि हम में सनक बहुत है अभी हमारे गर्म लहू में नमक बहुत है अभी, उतर
अब ज़र्द लिबादे भी नहीं ख़ुश्क शजर पर जिस सम्त नज़र उठती है बे रंग है मंज़र, उतरे
मैं सोचता तो हूँ लेकिन ये बात किस से कहूँ वो आइने में जो उतरे तो मैं सँवर
ख़्वाहिशों का इम्तिहाँ होने तो दो फ़ासले कुछ दरमियाँ होने तो दो, मय कशी भी बा वज़ू होगी
क्यों वो मेरा मरकज़ ए अफ़्कार था ? जिस के होने से मुझे इंकार था, यूँ तो मुश्किल
या रब मेरी हयात से ग़म का असर न जाए जब तक किसी की ज़ुल्फ़ ए परेशाँ सँवर
मुझे प्यार से तेरा देखना मुझे छुप छुपा के वो देखना मेरा सोया जज़्बा उभारना तुम्हें याद हो
ये ऐश ओ तरब के मतवाले बेकार की बातें करते हैं पायल के ग़मों का इल्म नहीं झंकार
निगाह ए नाज़ का एक वार कर के छोड़ दिया दिल ए हरीफ़ को बेदार कर के छोड़
आँखों से दूर सुब्ह के तारे चले गए नींद आ गई तो ग़म के नज़ारे चले गए, दिल