गमों का लुत्फ़ उठाया है खुशी…
गमों का लुत्फ़ उठाया है खुशी का जाम बाँधा है तलाश ए दर्द से मंज़िल का हर एक …
गमों का लुत्फ़ उठाया है खुशी का जाम बाँधा है तलाश ए दर्द से मंज़िल का हर एक …
यूँ अपनी गज़लों में न जताता कि मोहब्बत क्या है गर मिलते तो कर के दिखाता कि मोहब्बत …
आयत ए हिज्र पढ़ी और रिहाई पाई हमने दानिस्ता मुहब्बत में जुदाई पाई, जिस्म ओ इस्म था जो …
सज़ा पे छोड़ दिया, कुछ जज़ा पे छोड़ दिया हर एक काम को अब मैंने ख़ुदा पे छोड़ …
उसको जाते हुए देखा था पुकारा था कहाँ रोकते किस तरह वो शख़्स हमारा था कहाँ, थी कहाँ …
जब भी तुझ को याद किया ख़ुद को ही नाशाद किया, दिल की बस्ती उजड़ी तो दर्द से …
दर्द अब वो नहीं रहें जो ऐ दिल ए नादां पहले था खुले सर पर मेरे भी कभी …
देखोगे हमें रोज़ मगर बात न होगी एक शहर में रह कर भी मुलाक़ात न होगी, कहना है …
नदी में बहते थे नीलम ज़मीन धानी थी तुम्हारे वायदे की रंगत जो आसमानी थी, वफ़ा को दे …
हमने उसकी आँखे पढ़ ली छुपा कोई चेहरा है शायद ! वो हर बात पे हँस देती है …