अमीरों के बुरे अतवार को जो ठीक समझे है
अमीरों के बुरे अतवार को जो ठीक समझे है मेरी हक़ बात को वो क़ाबिल ए तश्कीक समझे
Sad Poetry
अमीरों के बुरे अतवार को जो ठीक समझे है मेरी हक़ बात को वो क़ाबिल ए तश्कीक समझे
ये कहना आसान नहीं है दिल में कोई अरमान है, हिम्मत की तो पाई मंज़िल दुनिया का एहसान
मोहब्बत ख़ुद ही अपनी पर्दादार ए राज़ होती है जो दिल पर चोट लगती है वो बे आवाज़
तस्कीन न हो जिस में वो राज़ बदल डालो जो राज़ न रख पाए हमराज़ बदल डालो, तुम
रहोगे हम से कब तक बेख़बर से जुदा होती नहीं दीवार दर से, मुसाफ़िर हाल क्या अपना सुनाए
हालात पर निगाह रुतों पर नज़र न थी जब तक रहे चमन में चमन की ख़बर न थी,
इतना सैराब होने वाला था मैं तह ए आब होने वाला था, तेज़ उस हुस्न की हरारत थी
अनगिनत फूल इंतिख़ाब गुलाब आदतें कर गया ख़राब गुलाब, वो है नाराज़ उस की चौखट पर ले के
मेरे क़ातिल को पुकारो कि मैं जिंदा हूँ अभी फिर से मक़तल को सँवारों कि मैं जिंदा हूँ
कोई हो दर्द ए मुसलसल तो नींद आती है बदन में हो कोई हलचल तो नींद आती है,