होंठों से लफ़्ज़ ज़ेहन से अफ़्कार छीन ले
होंठों से लफ़्ज़ ज़ेहन से अफ़्कार छीन ले मुझ से मेरा वसीला ए इज़हार छीन ले, नस्लें तबाह
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होंठों से लफ़्ज़ ज़ेहन से अफ़्कार छीन ले मुझ से मेरा वसीला ए इज़हार छीन ले, नस्लें तबाह
शजर तो कब का कट के गिर चुका है परिंदा शाख़ से लिपटा हुआ है, समुंदर साहिलों से
बच्चे की ज़िद को अब तो मेरा एतिबार दे ऐ आसमाँ ये चाँद मेरे घर उतार दे, चोरी
ता हद्द ए नज़र कोई भी दम साज़ नहीं है या फिर मेरी चीख़ों में ही आवाज़ नहीं
चराग़ों से हवाएँ लड़ रही हैं कि ख़ुद बच्चों से माएँ लड़ रही हैं, नशेमन तो उजाड़े थे
उसे हम याद आते हैं फक़त फ़ुर्सत के लम्हों में मगर ये बात भी सच है उसे फ़ुर्सत
वो मुहब्बत भी मौसम की तरह निभाता है कभी बरसता है कभी बूँद बूँद को तरसाता है, पल
दिल ग़म ए रोज़गार से निकला किस घने ख़ारज़ार से निकला, हम-सफ़र हो गए मह ओ अंजुम मैं
मुझ को सज़ा ए मौत का धोका दिया गया मेरा वजूद मुझ में ही दफ़ना दिया गया, बोलो
मेज़ चेहरा किताब तन्हाई बन न जाए अज़ाब तन्हाई, कर रहे थे सवाल सन्नाटे दे रही थी जवाब