कठ पुतली है या जीवन है जीते जाओ सोचो मत
कठ पुतली है या जीवन है जीते जाओ सोचो मत सोच से ही सारी उलझन है जीते जाओ
Sad Poetry
कठ पुतली है या जीवन है जीते जाओ सोचो मत सोच से ही सारी उलझन है जीते जाओ
रात के बाद नए दिन की सहर आएगी दिन नहीं बदलेगा तारीख़ बदल जाएगी, हँसते हँसते कभी थक
मुट्ठी भर लोगों के हाथों में लाखों की तक़दीरें हैं जुदा जुदा हैं धर्म इलाक़े एक सी लेकिन
गिरजा में मंदिरों में अज़ानों में बट गया होते ही सुब्ह आदमी ख़ानों में बट गया, इक इश्क़
ज़मीन दी है तो थोड़ा सा आसमान भी दे मेरे ख़ुदा मेरे होने का कुछ गुमान भी दे,
देखा हुआ सा कुछ है तो सोचा हुआ सा कुछ हर वक़्त मेरे साथ है उलझा हुआ सा
इंसान में हैवान यहाँ भी है वहाँ भी अल्लाह निगहबान यहाँ भी है वहाँ भी, ख़ूँ ख़्वार दरिंदों
न जाने कौन सा मंज़र नज़र में रहता है तमाम उम्र मुसाफ़िर सफ़र में रहता है, लड़ाई देखे
कोई हिन्दू कोई मुस्लिम कोई ईसाई है सब ने इंसान न बनने की क़सम खाई है, इतनी ख़ूँ
हर एक घर में दिया भी जले अनाज भी हो अगर न हो कहीं ऐसा तो एहतिजाज भी