कुछ न इस काम में किफ़ायत की

kuch na is kaam me kifayat kee

कुछ न इस काम में किफ़ायत की मैं ने दिल खोल कर मोहब्बत की, सस्ते दामों कहाँ मैं

शजर में शजर सा बचा कुछ नहीं

shazar me shazar sa bacha kuch bhi nahin

शजर में शजर सा बचा कुछ नहीं हवाओं से फिर भी गिला कुछ नहीं, कहा क्या गुज़रते हुए

फ़ैसले वो न जाने कैसे थे

faisle wo na jaane kaise the

फ़ैसले वो न जाने कैसे थे रात की रात घर से निकले थे, याद आते हैं अब भी

इस बार तो ग़ुरूर ए हुनर भी निकल गया

is baar to gurur e hunar bhi nikal gaya

इस बार तो ग़ुरूर ए हुनर भी निकल गया बच कर वो मुझ से बार ए दिगर भी

रास्ते अपनी नज़र बदला किए

raaste apni nazar badla kiye

रास्ते अपनी नज़र बदला किए हम तुम्हारा रास्ता देखा किए, अहल ए दिल सहरा में गुम होते रहे

बला वो टल गई सदक़े में जिस के शहर चढ़े

balaa wo tal gai sadke me jis ke shahar chadhe

बला वो टल गई सदक़े में जिस के शहर चढ़े हमें डुबो के न अब कोई ख़ूनी नहर

हर चमकती क़ुर्बत में एक फ़ासला देखूँ

har chamakati qurbat me ek faasla dekhoon

हर चमकती क़ुर्बत में एक फ़ासला देखूँ कौन आने वाला है किस का रास्ता देखूँ ? शाम का

फिर गोया हुई शाम परिंदों की ज़बानी

fir goya hui shaam parindon ki zabani

फिर गोया हुई शाम परिंदों की ज़बानी आओ सुनें मिट्टी से ही मिट्टी की कहानी, वाक़िफ़ नहीं अब

वक़्त बंजारा सिफ़त लम्हा ब लम्हा अपना

waqt banjaara sifat lamha ba lamha apna

वक़्त बंजारा सिफ़त लम्हा ब लम्हा अपना किस को मालूम यहाँ कौन है कितना अपना ? जो भी

एक रात लगती है एक सहर बनाने में

ek raat lagti hai ek sahar banane me

एक रात लगती है एक सहर बनाने में हम ने क्यों नहीं सोचा हमसफ़र बनाने में ? मंज़िलें