उनका दावा मुफ़लिसी का मोर्चा सर हो गया
उनका दावा मुफ़लिसी का मोर्चा सर हो गया पर हक़ीक़त ये है मौसम और बदतर हो गया, बंद
Sad Poetry
उनका दावा मुफ़लिसी का मोर्चा सर हो गया पर हक़ीक़त ये है मौसम और बदतर हो गया, बंद
मेरे ख़्वाबों से ओझल उस का चेहरा हो गया है मैं ऐसा चाहता कब था पर ऐसा हो
बताता है मुझे आईना कैसी बे रुख़ी से कि मैं महरूम होता जा रहा हूँ रौशनी से, किसे
शिकस्त ए ख़्वाब का हमें मलाल क्यूँ नहीं रहा बिछड़ गए तो फिर तिरा ख़याल क्यूँ नहीं रहा
यहाँ तकरार ए साअत के सिवा क्या रह गया है मुसलसल एक हालत के सिवा क्या रह गया
ख़्वाब में कोई मुझ को आस दिलाने बैठा था जागा तो मैं ख़ुद अपने ही सिरहाने बैठा था,
हमें नहीं आते ये कर्तब नए ज़माने वाले हम तो सीधे लोग हैं यारो वही पुराने वाले, उन
सभी ये पूछते रहते हैं क्या गुम हो गया है बता दूँ? मुझ से ख़ुद अपना पता गुम
अब आ भी जाओ, बहुत दिन हुए मिले हुए भी भुला ही देंगे अगर दिल में कुछ गिले
उदास बस आदतन हूँ कुछ भी हुआ नहीं है यक़ीन मानो किसी से कोई गिला नहीं है, अधेड़